बंद कर आंखों को वो
खुद को तसल्ली देते हैं,
कि आसपास जो भी है
उनके वो बेहतर है,
कभी खोलकर आंखें
निहार लो जो वहीं तो,
तुम्हे दिख जायेगा कि
हालात उधर कैसा है।
जिसने बस दूसरों के
घर की ही गंदगी देखी,
उसे मालूम क्या
नजदीक खुद के क्या क्या है
नजरिया ही नही सही तो
नजर क्या करे खुद से
चांद में सिर्फ दाग देखने
कि ही क्यूँ अभिलाषा है।
मिल रही नदियों से जिसने
किनारा रखा अक्सर,
वो समन्दर के बीच
जाकर रह जाता प्यासा है।
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