Ek kavita aisi  bhi...  एक कविता ऐसी भी...

रचनाओं के माध्यम से साहित्य का सृजन , और समाज को नई दिशा...

Wednesday 25 March 2015

'आतंकवाद' ( start to end "terrorism")

"आतंक  का विस्तार है ,जन-जन की परेशानी।
          मिट्टी में मिला खून है, देही में बना पानी।
इस मुल्क में बड़ जायेगा ,ये सोचा नही था।
     क्यों ठहर नही जाता ,कहता हर हिदुस्तानी।"
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धीरे-धीरे हो रहा , आतंक का प्रसार ।
सुदूर कोई बैठ , इसे दे रहा आकर ।
होता है आम जनता पर, इस कदर अत्याचार ।
मिटता किसी का सपना, किसी का होता है साकार ।

हर बूंद खून की ,है हमसे कर रही पुकार ।
नफरत भरी दुनिया में ,क्या अब रहा नही प्यार ।
बेटी किसी कि तो कहीं , बेटा हुआ लाचार ।
क्यों नही मनाता कोई , खुशियों भरा त्योहार ।

न जाने क्या सोंचा था , जिसने किया अविष्कार।
घोड़े को दबाते ही ,दिया जाता कोई मार  ।
छल्ली किसी का सीना ,किसी के सर से गोली पार।
आसान कितना हो गया है , मौत का व्यापार ।

जनता है परेशान , परेशान है सरकार ।
अदभुत् तरीके से है , करता कौन चमत्कार ।
ठहरो ,जरा सोचों ,दिया किसने इन्हें हथियार ।
कोई तो कर रहा  है ,इन जैसों पर भी  उपकार ।

दाउद नही ,लादेन ,न  ही अलकायदा जिम्मेदार ।
जो दे रहा अनुमति इन्हें ,वो भी है कसूरवार ।
यूँ ही नही दुनिया में ,मच रहा है हाहाकार  ।
है बड़ रही रंजिश , नही बचता दिलों में प्यार ।

मुमकिन है  मिटाना , इसे कर दो जहाँ के पार ।
दुश्मन की रगों में भरें हम ,दोस्ती का प्यार ।
इन सारे गुनाहों का यूँ तो ,इतना सा है सार ।
है चाहिए हर शख्स को ,यहां प्यार ,प्यार ,प्यार ।

बस अंत में कहता है, "अंकित" पंक्तियाँ ये चार ।

आतंक के हर पहलू का , करना है बहिष्कार ।
सिर्फ चैनों-अमन का ही हो ,हर क्षण यहां प्रचार ।
हर मुल्क हो सदस्य ,और ये विश्व  एक परिवार ।
 हर शख्स को मिलता रहे ,बस प्यार,प्यार, प्यार ।

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