Ek kavita aisi  bhi...  एक कविता ऐसी भी...

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Tuesday 31 October 2017

आस्तीन के सांप

वो आज अपनों में भी अंजान हुआ करते हैं।
मेजबान होकर भी  मेहमान हुआ करते हैं।

जिन्होंने दांव जहां सीखे सभी हुनर जाने,
वो उसी दंगल के पहलवान हुआ करते हैं

जिसे खुद के भी हिस्से कि हवा दे रहे थे
वो घर उजाड़ने वाले तूफान हुआ करते हैं।

यूं तो कभी फुर्सत में भी  हैरान हुआ करते हैं।
हम खुश हैं बस इसी से वो परेशान हुआ करते हैं।

पहचानना मुश्किल है गर सामने भी रहे हो तो
इंसानों के बीच कुछ शैतान हुआ करते हैं।

कभी सोंच कर भी बस सब्र यूं कर लिया हमने
कुछ लोग छिपे आस्तीन के सांप हुआ करते हैं।

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