Ek kavita aisi  bhi...  एक कविता ऐसी भी...

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Wednesday 8 November 2017

प्रथम पुण्यतिथि एवं जन्मदिन ( First Death Anniversary & Birthday )




भारतीय मुद्रा परिवार में माहौल ही कुछ ऐसा है। 
खुशी है, गम भी है जिसकी वजह भी पैसा है।

मेरी जेब में पड़ा बटुआ अचानक शोर करने लगा।
उनकी अलग अलग आवाजों को सुन कर मैं जगा।


सिक्कों की खनक में छिपे सच ने बहुत कुछ जताया।
सिमटी हुई नोटों की बंद खामोशी ने कुछ बताया।

आज मुद्रा परिवार का हर सदस्य शोक गान गा रहा है।
अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि,  यानी बरसी मना रहा है।

आज ही के दिन मोदी जी ने एक एलान किया था।
हमारे बुजुर्गों को हमसे इस तरह से छीन लिया था।

अब हमें तो किसी का सहारा ही न रहा। 
सौ रूपये के नोट ने विनम्रता से कहा।


वो एक हजार और पांच सौ कितने अच्छे थे।
हमें हमेशा अपने अन्दर सहज कर रखते थे।

अब हम स्वयं दूसरों को सहारा दे रहे हैं।
बाकी बचे नोटों की परवरिस कर रहे हैं।


सुन कर ये आवाज दो नये नोट मुस्कुराने लगे।
आपनी मुस्कुराहट का किस्सा कुछ यूँ बताने लगे।

उनके जाने के बाद ही तो हम जन्म ले पाये।
अब क्या अपने जन्मदिन का उत्सव  भी न मनाये।

सुनकर दोनों पक्ष हमारा तो सिर चकराय।
अब आप बताये। ...
‎शोक  मनाया जाये या उत्सव गान गाया जाय।
 




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