Ek kavita aisi  bhi...  एक कविता ऐसी भी...

रचनाओं के माध्यम से साहित्य का सृजन , और समाज को नई दिशा...

Monday 9 March 2015

Hal holi ka ( हाल होली का)

... हाल होली का .....
जब हम पूछे हैं नानी से
बोलीे तब सुन मेरे लाल ।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को
मारने के लिये बुना था जाल ।

बैठा दिया आग पर होलिका
उढा के तन पर एक दुसाल ।
रटने लगा वो वासुदेव को
जिनसे डर कर भागे काल ।

भक्त की भक्ति से खुश होकर
हरि ने दी हर मुश्किल टाल ।
नही हुआ प्रहलाद को कुछ भी
खुद होलिका की जल गई खाल ।

तभी से मेरे लाल हम सभी
इसे मनाते हैं हर साल ।
हैं त्यौहार बहुत से लेकिन
इसकी है एक अलग मिसाल।

सुनो सखा है क्या ये होली
होली में क्या होता हाल ।
अंकित के अल्फाज हैं ये
और है होली का पूरा हाल ।

बीते सर्दी के दिन जैसे
होता है फिर खूब धमाल ।
लौट लौट कर आता है ये
फाल्गुन मास में ही हर साल ।

यही मास मा हर दुकान मा
दिखता बहुत ही ज्यादा माल ।
कोई है कहता  बहुत खरीदें
कोई है हँस के देता टाल ।

कोई है कहता बढिया-बढिया
काजू पिस्ता देना डाल ।
कोई है कहता नहीं खरीदें
मंहगाई का रूप विशाल ।

दादी कहती हैं छुटकी से
गुजिया में खूब खोया डाल ।
कहीं पर कचरी है सफेद तो
कहीं बने हैं पापड़ लाल ।

बच्चे बडों संग हैं जाते
हाथ में ले उपले की माल ।
हवन होलिका का होता है
जिसमें उपले देते डाल ।

भंग चड़ाकर पी ठण्डाई
पल में बदले सबकी चाल ।
मस्त मगन हर  सख्श यहां पर
करता है फिर खूब धमाल ।

रंगीला हर तन हो जाता
पड़ता है जब रंग गुलाल ।
नीले ,हरे ,सुनहरे ,पील,
लाल ,गुलाबी दिखते बाल ।

सखियाँ कहती है सखियों से
मैं रंग दूंगी तेरे गाल ।
पकड़ कोई यदि आ जाता तो
बाल्टी से रंग देती डाल ।

गुब्बारों में रंग हरा तो
पिचकारी की धार है लाल ।
गले मिले हर कोई किसी से
लगा के तन पर ढेर गुलाल ।

अपना अपना ढंग है सबका
सबकी अपनी अपनी चाल ।
एक बात जो आप सभी से
कहता  है अंकित जायसवाल ।

मन में न हो बैर किसी के,
घृणा द्वेष को खुद से निकाल ।
प्रीत की रीति निभाओ ऐसे
जन जन का घर हो खुशहाल ।

़़़़़़़़़  धन्यवाद  ़़़़़़़़़
होली की हार्दिक बधाइयाँ ।।

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