कड़ी धूप में तन को शीतल ,
करती वृक्षों की छाँव ।
श्रम करना बंद नही करता ,
सिर दर्द करे या पाँव ।
करती वृक्षों की छाँव ।
श्रम करना बंद नही करता ,
सिर दर्द करे या पाँव ।
रोजी रोटी धरती उनकी ,
विकसित उनसें ही गाँव ।
फिर भी कृषकों की किसमत,
देखो हार रहे हर दाँव ।
विकसित उनसें ही गाँव ।
फिर भी कृषकों की किसमत,
देखो हार रहे हर दाँव ।
दलहन, तिलहन, धान, गेंहू ,
फल, सब्जी का वह दाता ।
फिर क्यों अपने जीवन मे ,
वह ही है कष्ट उठाता ।
फल, सब्जी का वह दाता ।
फिर क्यों अपने जीवन मे ,
वह ही है कष्ट उठाता ।
फसलों को वह सींच ,
कड़ी मेहनत से फसल उगाता ।
मुश्किल से ही घर वालों को ,
दो वक्त की रोटी दे पाता ।
कड़ी मेहनत से फसल उगाता ।
मुश्किल से ही घर वालों को ,
दो वक्त की रोटी दे पाता ।
कुदरत ने भी नही किया ,
कृषकों के संग इंसाफ ।
आँधी तूफां और पानी से
सब खेत हो गये साफ ।
कृषकों के संग इंसाफ ।
आँधी तूफां और पानी से
सब खेत हो गये साफ ।
पकी बालियाँ गेहूँ की ,
भू पर खुद बिखर गई ।
आलू जैसी भू गत फसलें ,
खेतों मे ही रह गई ।
भू पर खुद बिखर गई ।
आलू जैसी भू गत फसलें ,
खेतों मे ही रह गई ।
धैर्य खो गया है किसान का ,
दिखती न उसको आस ।
कर्ज चुकाने भर का भी धन,
रह गया न उसके पास ।
दिखती न उसको आस ।
कर्ज चुकाने भर का भी धन,
रह गया न उसके पास ।
हाय गरीबी ! ! !
हाय गरीबी ने कितनो की ,
आत्महत्या है करवाई ।
अपनी किस्मत पर रो-रो कर,
कितनों की आंखे भर आई ।
हाय गरीबी ने कितनो की ,
आत्महत्या है करवाई ।
अपनी किस्मत पर रो-रो कर,
कितनों की आंखे भर आई ।
टीवी पर समाचार पत्रों में ,
खबरें सबने बनाई ।
पर कृषकों की करुण वेदना ,
कोई न समझे भाई ।
खबरें सबने बनाई ।
पर कृषकों की करुण वेदना ,
कोई न समझे भाई ।
है किसान कह रहा कि ,
न अब करना खेती का काम ।
कड़ी मेहनत करके न मिलता ,
मेहनत भर का भी दाम ।
न अब करना खेती का काम ।
कड़ी मेहनत करके न मिलता ,
मेहनत भर का भी दाम ।
कैसे अब भरेगा हर कोई ,
अपने बच्चों का पेट ।
जब नही मिलेगा कृषकों को ,
फसलों का बेहतर रेट ।
अपने बच्चों का पेट ।
जब नही मिलेगा कृषकों को ,
फसलों का बेहतर रेट ।
पैसों का लगता है अब तो ,
उस घर में ही अम्बार ।
जहाँ किसानी छूट गई ,
रह गयी नौकरी या व्यापार ।
उस घर में ही अम्बार ।
जहाँ किसानी छूट गई ,
रह गयी नौकरी या व्यापार ।
कहते हैं जो हर एक भाषण में,
है कृषि प्रधान यह देश ।
मन विचलित हो जायेगा ,
गर दशा किसानों की ले देख ।
है कृषि प्रधान यह देश ।
मन विचलित हो जायेगा ,
गर दशा किसानों की ले देख ।
सोई रही सरकार अगर या ,
अक्षम रह गई कुछ कर पाने को ।
तो दूर नही है वो दिन भी ,
जब अन्न न होगा खाने को ।
अक्षम रह गई कुछ कर पाने को ।
तो दूर नही है वो दिन भी ,
जब अन्न न होगा खाने को ।
आगृह करता है 'अंकित' ,
इस भारत की सरकार से ।
ला कोई योजना कृषि हित में ,
कृषकों को संकट से उबार दें ।
इस भारत की सरकार से ।
ला कोई योजना कृषि हित में ,
कृषकों को संकट से उबार दें ।
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1 comment:
MY friends it is not only a poem ..
it is a true fact of farmer s life ...
so plz share your own feelings with me ...
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